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गुरुवार, 22 मार्च 2012

चौसा

बिहार में बक्सर के निकट कर्मनाशा नदी के किनारे चौसा नामक एक छोटा-सा कस्बा है।
 27 जून, 1539 ई. को इस स्थान पर हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच चौसा का युद्ध हुआ
 था। हुमायूँ बुरी तरह पराजित हुआ और उसे अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। वह अपने
 घोड़े के साथ गंगा में कूद पड़ा और एक भिश्ती की मदद से डूबने से बच गया। चौसा के
 युद्ध के बाद शेरशाह बंगाल और बिहार का सुल्तान बन गया और उसने
 'सुल्तान- ए-आदिल' की उपाधि धारण की। 

चौसा का युद्ध

 हुमायूँ के सेनापति हिन्दूबेग चाहते थे कि वह गंगा के उत्तरी तट से जौनपुर तक अफगानों को
 वहाँ से खदेड़ दे, परन्तु हुमायूँ ने अफगानो की गतिविधियों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। शेर
 खाँ ने एक अफगान को दूत बनाकर भेजा जिससे उसकी सेना की दुर्व्यवस्था की सूचना मिल
 गई। फलस्वरुप उसने अचानक रात में हमला कर दिया। बहुत से मुगल सैनिक गंगा में कूद 
पड़े और डूब गये या अफगानों के तीरों के शिकार हो गये। हुमायूँ स्वयं डूबते-डूबते बच गया
। इस प्रकारचौसा का युद्ध में अफगानों को विजयश्री मिली।

इस समय अफगान अमीरों ने शेर खाँ से सम्राट पद स्वीकार करने का प्रस्ताव किया। शेर खाँ 
ने सर्वप्रथम अपना राज्याअभिषेक कराया। बंगाल के राजाओं के छत्र उसके सिर के ऊपर
 लाया गया और उसने शेरशाह आलम सुल्तान उल आदित्य की उपाधि धारण की। इसके बाद
 शेरशाह ने अपने बेटे जलाल खाँ को बंगाल पर अधिकार करने के लिए भेजा जहाँ जहाँगीर कुली
 की मृत्यु एवं पराजय के बाद खिज्र खाँ बंगाल का हाकिम नियुक्‍त किया गया। बिहार में शुजात
 खाँ को शासन का भार सौंप दिया और रोहतासगढ़ को सुपुर्द कर दिया, फिर लखनऊ, बनारस,
 जौनपुर होते हुए और शासन की व्यवस्था करता हुआ कन्नौज पहुँचा
कन्नौज (बिलग्राम १५४० ई.) का युद्ध- हुमायूँ चौसा के युद्ध में पराजित
 होने के बाद कालपीहोता आगरा पहुँचा, वहाँ मुगल परिवार के लोगो ने
 शेर खाँ को पराजित करने का निर्णय लिया। शेरशाह तेजी से दिल्ली की 
और बढ़ रहा था फलतः मुगल बिना तैयारी के कन्‍नौज में आकर भिड़ गये 
। तुरन्त आक्रमण के लिए दोनों में से कोई तैयार नहीं था । शेरशाह ख्वास खाँ
 के आने की प्रतीक्षा में था । हुमायूँ की सेना हतोत्साहित होने लगी । मुहम्मद 
सुल्तान मिर्जा और उसका शत्रु रणस्थल से भाग खड़े हुए । कामरान के ३ हजार
 से अधिक सैनिक भी भाग खड़े हुए फलतः ख्वास खाँ, शेरशाह से मिल गया ।
 शेरशाह ने ५ भागों में सेना को विभक्‍त करके मुगलों पर आक्रमण कर दिया ।
जिस रणनीति को अपनाकर पानीपत के प्रथम युद्ध में अफगान की शक्‍ति को 
समाप्त कर दिया उसी नीति को अपनाकर शेरशाह ने हुमायूँ की शक्‍ति को नष्ट क
र दिया । मुगलों की सेना चारों ओर से घिर गयी और पूर्ण पराजय हो गयी । हुमायूँ 
और उसके सेनापति आगरा भाग गये । इस युद्ध में शेरशाह के साथ ख्वास खाँ, हेबत
खाँ, नियाजी खाँ, ईसा खाँ, केन्द्र में स्वयं शेरशाह, पार्श्‍व में बेटे जलाल खाँ और जालू 
दूसरे पार्श्‍व में राजकुमार आद्रित खाँ, कुत्बु खाँ, बुवेत हुसेन खाँ, जालवानी आदि एवं
 कोतल सेना थी । दूसरी और हुमायूँ के साथ उसका भाई हिन्दाल व अस्करी तथा हैदर 
मिर्जा दगलात, यादगार नसरी और कासिम हुसैन सुल्तान थे ।

चौसा


बिहार में बक्सर के निकट कर्मनाशा नदी के किनारे चौसा नामक एक छोटा-सा कस्बा है। 27 जून, 1539 ई. को इस स्थान पर हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच चौसा का युद्ध हुआ था। हुमायूँ बुरी तरह पराजित हुआ और उसे अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। वह अपने घोड़े के साथ गंगा में कूद पड़ा और एक भिश्ती की मदद से डूबने से बच गया। चौसा के युद्ध के बाद शेरशाह बंगाल और बिहार का सुल्तान बन गया और उसने 'सुल्तान- ए-आदिल' की उपाधि धारण की।